Tuesday, 14 May 2013

jai shrikrishna


आज सुबह - सुबह जैसे ही फेसबुक पे लॉग इन  किया,की किसी पेज के एडमिन ने एक सुविचार लिखा था की "भीतर से खोखले मनुष्य ही ईश्वर को प्रिय होते हैं,अतः हम सभी को ऐसा ही होने का प्रयत्न करते रहना चाहिए ,,,,,,,,सुप्रभात !"
लो जी अभी एडमिन का ये स्टेटस अपडेट ठीक से हुआ भी नहीं था की ,पहले से ही घात लगाए  बैठे चंद विज्ञानियों ने तो एडमिन जी का मुह पहले ही नोच लिया,तरह-तरह के तर्क आने लगे की इसका मतलब की शरीर में हड्डियां ,रक्त,रक्तवाहिनियाँ,हृदय-धमनियां ,निलय-अलिंद,आंत ,आमाशय,किडनिया पित्ताशय,आदि-आदि,ये सब नहीं होगा तभी ईश्वर पसंद करेगा,,,,,,,
                  खैर जो भी हो पर मुझे लगता है की इन तथाकथित महाविग्यानियो का उपरोक्त तर्क देते समय उनका मस्तिष्क ठीक से काम नहीं कर रहा था,या ये कहे की उनकी तंत्रिका संवेदी कोशिकाए सुन्न हो गई रही होंगी,वर्ना उन्हें इतना तो पता चल ही गया होता की सुबह के ४-५ बजे के समय सुप्रभात कहने के लिए साथ में  ईश्वर को पसंद लगने वाली किसी बात का ज़िक्र हुआ है तो यहाँ विज्ञान कम ,अध्यात्म और मानवीय मूल्यों की बात  ज्यादा हो रही होगी............,,,,,,,,,,,,,,
                जहाँ  तक अपनी बात करू तो मुझे एडमिन की बात बहुत अच्छी और पहुची हुई लगी,पर उस वक्त कमेंट देने का समय नहीं था सो अब लिखना चाह रही हूँ ,तो वो स्टेटस नहीं मिल रहा,अतः अपनी ही वाल पे शेयर कर रही हूँ........अब वापस स्टेटस पे आते हैं ,,,- हाँ ठीक ही तो है अगर हम सभी ऐसा कर पाते (भीतर से खोखला )तो कितना अच्छा होता ,कम से कम समय -समय पर ईश्वर से हमारे द्वारा की जाने वाली शिकायतों में कुछ कमी ज़रूर आ  जाती,,,,,,,,,,
                   बात को थोडा और विस्तार से समझने के लिए   उदाहरण हेतु श्रीकृष्ण की बासुरी को माध्यम बनाया जाए तो हम सभी ने कही न कही ये पढ़ या सुन  रखा है की गोपिकाओ को मुरली से किस प्रकार घोर इर्ष्या हो गई थी ,तंग आकर उन्होंने एक दिन मुरली से पूछ ही लिया की तेरे में ऐसा क्या विशेष है  जो श्री कृष्णा की  इतना अधिक प्रिय बनी हुई है,हर समाय श्रीकृष्ण के होठो पे चढ़ी बैठी रहती है क्यों?,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
                 तब मुरली ने गोपिकाओ से कहा की मुझमे ऐसा कुछ भी विशेष नहीं है ,परन्तु हाँ ईश्वर का प्रिय बन्ने के लिए मैंने बहुत अधिक कठिन तपस्या की है,हाँ तमाम तरह के कष्ट सहन किये हैं,जहां पहले तो मैंने   एक बांस के रूप में जाडा ,गर्मी,बरसात का सामना किया,पर इतने में ही मेरे कष्ट ख़त्म नहीं हुए,मुझे कई-कई टुकडो में काट दिया गया ,फिर बासुरी बनाने के लिए मुझमे १ नहीं ७-७ छेद किये गए,बासुरी की आवाज़ मधुर हो इसके लिए मुझे भीतर से एकदम खोखला बना दिया गया,और इस तरह से मैं  एक सुन्दर सी बासुरी बनकर तैयार हो गई,और तब जाकर कही मुझे भगवान् श्रीकृष्ण के होठो पर स्थान मिला,जिसकी मैंने  कभी कल्पना भी नहीं कर रखी  थी,,,,,,,,
              चूंकि ईश्वर  को भीतर से खोखले लोग पसंद आते है अतः हम मनुष्यों को भी अपने भीतर व्याप्त ईर्ष्या,काम,क्रोध,लोभ ,मोह,मिथ्या अभिमान जैसे विकारों को  जड़ से समाप्त कर के जीवन में आने वाली हर प्रकार के कष्टों को बिना उफ़ और शिकायत के सामना करना चाहिए ,,,,,,,,,,
             और इस प्रकार की गई सच्ची आराधना का कही स्थान हो या न हो पर ईश्वर के विशाल हृदयं में स्थान अवश्य होता है ,इसी विश्वास  के साथ,,,,,,,,,,,,
                                                                                                    "जय श्री कृष्णा"