मेरी कविता
जो थी अधूरी
,बिखरी -बिखरी सी
,मिली उसे सम्पूर्णता
एक तुम्हारे आ जाने से ,
ऐसे
जैसे -बिन मौसम के
मधुबन में बहार हो
कोई
मरू -पृष्ठ पर सावन
की फुहार हो कोई
बिना तुम्हारे
मेरा जीवन
जैसे भटकता हो
वन में हिरन,
जैसे अँधेरे में
लिपटी किरण
बिन साजन- सजनी
का कंगन
निः शब्द -निष्प्राण
हो तन-मन
ठहरती हैं तुम्ही प
र नज़र .
.अपलक,,,,
जैसे देखे राधा को
राधा का श्याम ,
जैसे चंदा को देखे
चकोर ,,,,,,,,
अविराम............
[ वर्षा शुक्ला ]
7 comments:
इस बेहतरीन कविता के साथ ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है वर्षा जी।
सादर
आपका बहुत-बहत धन्यवाद .........
स्वागत है आपका वर्षा जी.....
सुन्दर रचना के लिए बधाई...
आशा है आगे भी आपके ब्लॉग पर अच्छा पढ़ने मिलता रहेगा..
शुभकामनाएँ.
अनु
best poem I ever have read.....i proud on u.....
aapka hriday se swagat,likhiye aur likhti rahiye .aap achha likhti hain :)
ज़बरदस्त ......नारी मनोदशा की इतनी सुन्दर अभिव्यक्ति बहुत कम देखने को मिलती है .....निःसंदेह आप बधाई की पात्र है ....
स्वागत है आपका ब्लॉग जगत में ...सुन्दर प्रयास।।।यूँ ही कलम की जादूगरी दिखाती रहें।:)
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